आसन, प्राणायाम और ध्यान का शरीर पर हितकर प्रभाव | Sudhanshu Ji Maharaj

आसन, प्राणायाम और ध्यान का शरीर पर हितकर प्रभाव | Sudhanshu Ji Maharaj

Asana, pranayama and meditation have beneficial effects on the body

आसन, प्राणायाम और ध्यान का शरीर पर हितकर प्रभाव

मन को नियंत्रित करने से सभी शारीरिक और मानसिक व्याधिायां स्वयं दूर होने लगती हैं और ‘ध्यान’ का यही लक्ष्य है। ‘ध्यान’ अहम् के विसर्जन, चेतना के जागरण तथा जीवन के रूपांतरण का महाविज्ञान है।
‘योग’ भारतीय दर्शन का मौलिक अंग है। हाल ही में योग पर हुए अध्ययनों से प्रतीत होता है कि यौगिक आसन, प्राणायाम तथा ध्यान का अभ्यास, शरीर तथा मन पर व्यापक हितकर प्रभाव डालता है।
यौगिक आसनों के अभ्यास से शरीर में बहुत से महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं। अंतःस्रावी ग्रन्थियों की कार्यक्षमता में वृद्धि हो जाती है। उसे 6 माह तक लगातार अभ्यास करने वाले युवकों में एड्रीनल, थायरायड, पैंक्रियाज और टेस्टीज आदि अंतःस्रावी ग्रंथियां अधिक कार्य करने लगती है। जिससे शारीरिक क्षमता बढ़ जाती है।

चयापचयात्मक प्रभाव भी ठीक हो जाता है। आसन के अभ्यासी लोगों में रक्त शर्करा, रक्त वसा तथा कोलेस्ट्राल की मात्रा कम हो जाती है। मूत्र से नाइट्रोजन कम निकलता है। आसन के अभ्यासी व्यक्तियों में धातुएं सम रहती हैं। चयापचय संबंधी क्रियाएं दुरुस्त हो जाती है। नाड़ी और श्वांस की गति कुछ कम हो जाती है। शरीर से अनावश्यक चर्बी कम हो ने से शरीर का भार कम हो जाता है। मोटापा घट जाता है।
आसन का अभ्यास, सामान्य शारीरिक व्यायाम से मौलिक रूप से अलग है।

प्राणायाम

‘प्राणायाम’ का शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जीवनी शक्ति ‘प्राण’ को आराम अर्थात् नियंत्रण करने की प्रक्रिया ही ‘प्राणायाम’ है। प्राणायाम बहुत महत्वपूर्ण है। प्राणायाम का शरीर और मन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। प्राणायाम की साधना से एड्रीनल कर्टिक्स की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। ‘ध्यान’ की अनेक विधियां विश्व के विभिन्न भागों में प्रचलित है। लोगों द्वारा किये गये अनुसंधान के अनुसार ‘ध्यान’ के अभ्यासी साधक में मौलिक सुधार आता है। उसके शरीर में अनेक जैविक तथा मानसिक परिवर्तनों से वह पूर्णतया स्वस्थ और सक्षम हो जाता है। मानसिक तनाव कम होने के साथ-साथ सहिष्णुता बढ़ जाती है। कार्यशक्ति बढ़ती है, अपराध की प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है।

ध्यान

ध्यान की अन्य पद्धति में मन और शरीर की क्रियाशीलता बढ़ती है। साधकों के मन और शरीर की क्रियाशीलता बढ़ती है। साधक के रक्त में
एसिटिलकोलिन कटेकालमिन, हिस्टामिन आदि एन्जाइम की मात्रा बढ़ जाती है। कई बार साधक में शारीरिक क्रियाएं स्थिर हो जाती हैं, लेकिन मन और मस्तिष्क अत्यधिक क्रियाशील हो जाते हैं। डिप्रेशन से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए ध्यान का अभ्यास बहुत उपयोगी है। मस्तिष्क तथा नाड़ी संस्थान की क्रियाशीलता बढ़ जाने से माइण्ड को प्रसन्नता भरने के लिए व्यक्ति में चैतन्यता की वृद्धि होने लगती है।

केवल 25 मिनट के लिए आसन-प्राणायाम एवं ध्यान का संयोजन करने से मस्तिष्क तंत्र के क्रियान्वयन और ऊर्जा स्तर में काफी सुधार हो सकता है। एक शोध से पता चलता है कि इसे नियमित करने से मस्तिष्क तंत्र के क्रियान्वयन, लक्ष्य निर्देशन, व्यवहार से जुड़ी संज्ञानात्मक और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने की क्षमताओं, स्वाभाविक सोच की प्रक्रियाएं और क्रियाओं को बढ़ाया जा सकता है।
इस प्रक्रिया के ‘ध्यान’ को शारीरिक आसनों और सांस लेने के व्यायाम से जोड़ा जाता है। साथ ही विचारों, भावनाओं और शरीर की उत्तेजनाओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। आइये! नित्य ध्यान करें, आसन, प्राणायाम और ध्यान का समन्वय कर सके तो शरीर, मन, आत्मा पर हितकर प्रभाव पड़ेगा।

1 Comment

  1. Ram chandumal Gurubaxani says:

    Bahut badiya hai ye sabhi kriya.

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