आत्मचिंतन के सूत्र: | यज्ञ हमारी वैदिक परंपरा है! | Sudhanshu Ji Maharaj | Atmachintan

आत्मचिंतन के सूत्र: | यज्ञ हमारी वैदिक परंपरा है! | Sudhanshu Ji Maharaj | Atmachintan

यज्ञ हमारी वैदिक परंपरा है!

आत्मचिंतन के सूत्र: यज्ञ हमारी वैदिक परंपरा है!

जब हम पवित्र भावना से अग्नि प्रज्ज्वलित करके उसमें हवन सामग्री की आहुतियां प्रदान करते हैं , साथ ही मंत्रोच्चार के द्वारा देवता का आह्वाहन करते हुए , वही यज्ञ कहलाता है ! यज्ञ का हमारे पुराने समय से कितना अधिक महत्व है इसका वर्णन सभी पवित्र ग्रंथों में ओर वेदों में किया गया है ! हमारे ऋषि मुनि अपने साधना काल मे नित्य यज्ञकी आहुतियां प्रदान करके वातावरण को और स्वयम को भी शुद्ध करते थे, वनों में रहकर जब वह तपस्या करते थे तब पूरा वातावरण ही यज्ञ की अग्नि ओर धुएं से महकता रहता था !

माना जाता है कि यदि आपकी पूजा पाठ, मंत्र साधना भी विफल हो जाये तो यज्ञ का सहारा लो – क्योकि यज्ञकी अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए यज्ञपुरुष भगवान का आह्वाहन किया जाता है और तब पवित्रता पूर्वक उसमे आहुतियां प्रदान की जाती हैं !

यज्ञ के लिए जो समिधा प्रज्वलित की जाती है उसकी भी विशेष प्रक्रिया है जो हम साधारण रूप में नही कर सकते – गुरु के निर्देशन में ही उस पवित्र अग्नि को आह्वाहन किया जाता है जो साधारण कार्य नही है !

मंत्रोच्चार के द्वारा हवन सामग्री द्वारा तथा घी की आहुति द्वारा देवता का आह्वाहन होता है,  विद्वान पंडित इसमें सहयोग करते हैं और वह आहुति भगवान तक पहुंच सके इसकी प्रार्थना की जाती है !

यज्ञ की परंपरा हमारी संस्कृति का हिस्सा है

यज्ञ की परंपरा हमारी संस्कृति का हिस्सा है जिसे हमे अवश्य अपनाना चाहिए क्योंकि जीवन मे आये हुए या आने वाले कठिन समय व समस्याओं का समाधान यही प्राप्त होता है !

जब यही यज्ञ संबुद्ध सदगुरु के सानिध्य में किया जाए तो उसका फल कई गुना प्राप्त होता है क्योंकि उसमें देवताओं की कृपा के साथ गुरुकृपा भी जुड़ जाती है जो आपको इतना पवित्र कर देती है कि जन्मों का कल्मष मिट जाता है !

दीवाली से पहले गणेश व लक्ष्मी माता के पूजन का विधान है – घर मे सुख समृद्धि बनी रहे साथ ही सुबुद्धि के देवता गणपति भगवान ऐसी कृपा रखे जिससे सम्रद्धि टिकी भी रहे और सही उपयोग करना हम जान सकें ,इसी भावना से यह यज्ञ आयोजित किया जाता है !

इसलिए यज्ञ की महत्ता को समझें, जो आहुतियां प्रदान की जाती हैं वह ब्रह्मांड तक जाकर आपके पाप ताप तो नष्ट करती ही हैं साथ ही पर्यावरण की शुद्धि भी होती है !

दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करो

इसी मंगल कामना को ध्यान में रखते हुए गुरुदेव वर्षों से आश्रम में इस यज्ञ का आयोजन करते हैं, निमंत्रण देते है अपने भक्तों को कि दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करो !

गुरुदेव तो अपने हर शिष्य के घर मे खुशहाली ,समृद्धि, भक्ति देखना चाहते हैं, सभी रोगमुक्त हो और परिवार में सामंजस्य बना रहे, यही गुरुदेव की इच्छा होती है और इसी को ध्यान में रखते हुए यज्ञ का प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है !

हमे यज्ञ की महत्ता को समझना चाहिए और सपरिवार भाग ले, अपना भाग्य संवारें और शब्द ही नही गुरुदेव का धन्यवाद करने के लिये जो हमे इसका अवसर मिला !

3 Comments

  1. S. B. singh says:

    Guru dev ji ap ka Amrit Vani padhkar dhanya hua
    Ap is prakar koo ap par durson dete rahe

  2. Today, lack of knowledge is the major problem. Now that we know what a Yagya is, we should follow religiously. As pronunciation of mantras is very important, only a knowledgeable priest can do it rightly unless we are educated in this field. Om Guruve Namah

  3. SURESH Chandra Sharma says:

    Param Poojya Sadguru Maharaj ke paawan charanon me saadar naman

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