मान और अपमान के चक्रव्यूह से बचें! |आत्मचिंतन के सूत्र | Sudhanshu Ji Maharaj

मान और अपमान के चक्रव्यूह से बचें! |आत्मचिंतन के सूत्र | Sudhanshu Ji Maharaj

Understanding honour and humiliation!

मान और अपमान के चक्रव्यूह से बचें!

जब हमारे अनुकूल कोई व्यवहार करता है तो हम प्रसन्न होते हैं , लगता है हमारा मान किया, हमारे अनुकूल चला परंतु जब इसके विपरीत कोई हमारी बात नही मानता तो हम उसे अपमान की श्रेणी में रखते है।

मान किसी आयु से नही किया जाता, कुछ लोग इसी को मान कर चलते हैं कि हम आयु में बड़े हैं तो हमारा मान किया जाय- मान आपको आपके व्यवहार से या कर्मो से प्राप्त होता है !

कुछ लोग परिपक्व अवस्था मे पहुंचकर भी अपने से छोटी आयु वालो से भी ज्यादा बचकाना व्यवहार करते हैं और मान की अपेक्षा करते हैं !
स्वयम को परिपक्व बनाइये और ऐसे गुण पैदा करें कि आपको सम्मानित किया जाए, आपकी प्रतिभा ही आपका व्यक्तित्व का दर्पण है।

जब व्यक्ति उच्च मानसिकता से परिपक्व हो जाता है -तब वह पूज्यनीय हो जाता है, इसलिए हमें अपने सोच में, अपने विचारों में, अपने व्यवहार में बदलाव लाना होगा जिससे हम उस श्रेणी को प्राप्त कर सकें !

कई बार आप सम्मान के पात्र नही भी होते, तब भी लोग आपको आदर देते हैं क्योंकि आप ऐसे पद पर बैठे हुए हैं : वह सम्मान ह्रदय से नही होता – अपना मतलब पूरा करने के लिए किया जाता है।

इसलिए इस भ्रम को तोड़िये ओर अपने वास्तविक रूप को पहचानिए ! इतने सौम्य स्वभाव और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी बनिये जहां स्वतः ही ह्रदय झुक जाता है। ऐसा सम्मान सदा टिकने वाला होता है, अपने जीवन को सात्विक विचारों से और सरलता से भर लीजिए -जहां दिल खोलकर सब आपका स्वागत करें प्रेमपूर्ण हो जाये !

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