कष्ट और रोग का सबसे बड़ा कारण है यह | Sudhanshu Ji Maharaj

कष्ट और रोग का सबसे बड़ा कारण है यह | Sudhanshu Ji Maharaj

कष्ट और रोग का सबसे बड़ा कारण है यह

चिन्ता चिता के समान है। चिता तो मुर्दे को जलाती है, लेकिन चिन्ता जिन्दा इंसान को जलाती है। यह ऐसी दीमक है जो एक बार लग जाए तो व्यक्ति को चाटकर ही छोड़ती है। चिन्ता व्यक्ति की मानसिकता पर बहुत बुरा प्रभाव डालती है, मन की पवित्राता समाप्त हो जाती है, अपवित्रता आ जाती है। 

चिन्ता मनुष्य के शरीर को खा जाती है

शारीरिक रूप से व्यक्ति रोगी हो जाता है, आयु कम हो जाती है, जीवन में अशान्ति आ जाती है, विश्वास में कमी आ जाती है और मौत का भय अन्दर समा जाता है। चिन्ता परमेश्वर से दूर करती है, व्यक्ति को घेरे रहती है। चिन्ता और अधिक चिन्ता की जननी है, इसलिए चिन्ता करके समस्या का समाधन नहीं खोज सकते। चिन्ता का बुरादा सब जगह बिछा है, इसको कहीं छोड़ नहीं सकते। 

एक बार एक राजा अपने धन के बारे में पूछ रहे थे कि मेरे कोष में कितना धन है। उनका कोषाध्यक्ष बता रहा था कि महाराज गिनती चल रही है, अभी पूरा पता नहीं चल पा रहा है कि आपके कोष में कितना धन है। इतनी देर में एक ज्योतिषी आ गए, कहने लगे ‘‘राजा साहब मैं आपको आपका भविष्य बताऊं।’’

राजा ने कहा कि अभी तो यह बताओ कि हमारा धन कितना है? ज्योतिषी ने कहा इसको बताने वाले तो आपके मंत्री हैं, गिन कर बता देंगे। मैं तो यह बताने आया हूं कि आपके पास इतना धन है कि सात पीढि़यां भी बैठकर खाएं तब भी आपका धन चलता जाएगा। राजा उदास हो गया। वह सोचता था कि उसके पास बहुत धन है। जब सात पीढि़यों तक ही धन है तो आठवीं पीढ़ी का क्या होगा?

चिंता ही दुःख का कारण है

राजा बड़ा दुःखी हुआ कि सात पीढ़ी के बाद तो वह कंगाल हो जाएगा। किसी का धन दस साल, किसी का तीस साल चलता है, उसके बाद वे गरीब हो जाते हैं, इसी तरह सात पीढ़ी के बाद वह कंगाल हो जाएगा, उससे ज्यादा गरीब कौन होगा? राजा यही सोच-सोचकर दुःखी रहने लगा। सच यह है चिंता ही दुःख का कारण है। अपने जीवन का सुःख दुःख भगवान पर छोड़ दीजिए वह आपको कभी दुःखी नहीं होने देगा, बस उस पर विश्वास रखिए और चिंता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दीजिए।

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