ख़ून के रिश्तों में ही न उलझें! | Think beyond your blood relations | Sudhanshu Ji Maharaj

ख़ून के रिश्तों में ही न उलझें! | Think beyond your blood relations | Sudhanshu Ji Maharaj

Think beyond your blood relations

सामाजिक दायित्वों का निर्वहन भी करें शिकायत ही रहती है हमेशा

अपनों के लिए जोड़-जोड़ कर आप कितना भी दे दें, फिर भी उनको शिकायत रहती है। आपका बेटा कहेगा कि हमें क्या कमाकर दिया आपने? क्या दिया है आपने मुझको? आपने मेरे लिए क्या किया? ऐसी टीकाएँ और सवाल आपके अन्य सगे-सम्बन्धी भी आपसे करेंगे। आप उस समय बहुत परेशान होंगे और ख़ुद को ठगा हुआ महसूस करेंगे। तब आप ख़ुद को बड़ा अपमानित महसूस करेंगे।

तब हृदय से उठेगी उपकार की हिलोर

आपने अपनी सारी ज़िन्दगी दांव पर लगा दी। इन सबके लिए अपना शरीर खराब किया, अपनी नींद खराब की। और, उसके बाद भी आपका अपना ख़ून आपसे अनुचित शिकायत कर रहा है। इसके विपरीत यदि आपने भगवान के लिए थोड़ा सा भी कर्म किया, निज परिवार से इतर किसी भी व्यक्ति के लिए आपने थोड़ा सा भी कुछ किया, आपने उन पर कोई उपकार किया और किसी का भला किया; तो उसके हृदय से जो हिलोर उठेगी, वह आपकी थकान को मिटा देगी। वह व्यक्ति आपके प्रति नतमस्तक हो जाएगा।

बन जाओ भगवान के दूत

वह उपकृत आदमी आपके सामने हाथ जोड़कर कहेगा- भगवान ने ही आपको भेजा है मेरे लिए। आप तो भगवान का रूप बनकर आये हैं, आप भगवान के दूत बनकर आ गए और मेरी सहायता हो गयी। मैं कितना धन्यवाद करूँ आपको।तब आप कहेंगें- नहीं नहीं कोई धन्यवाद नहीं करना, बोलना भी नहीं किसी से और बताना भी मत किसी को। जब आप ऐसा कहकर आगे निकल जाते हैं तब आपके हृदय में जो आनन्द, जो उल्लास, जो उत्साह उमड़ता है, उसे शब्द देना मुश्किल है।

हर लूँ हर किसी की पीड़ा

उस समय आपका मन करता है कि मैं ऐसे उपकार और ज़्यादा लोगों के साथ करूँ। आप कहेंगे कि भगवान ने मुझे इतना क्यों नहीं दिया कि दुनिया में हर किसी की पीड़ा हर लूँ, हर किसी का अभाव दूर कर दूँ। अब आप देखिये, दोनों उपकारों के प्रतिफल के बीच कितना अन्तर है। एक ओर थोड़ा सा देकर आपमें भीतरी प्रसन्नता जागती हैं, दूसरी तरफ सब कुछ देकर भी आपसे अपनों की ढेरों शिकायतें हैं। आप जानते हैं कि ऐसा क्यों है? क्योंकि आप उस समय मोह में जी रहे थे। आप जिन्हें अपना कह रहे थे वो आपके अपने हैं ही नहीं।

खुद कमाओ और अपना रास्ता बनाओ

ऐसी परिस्थिति में मैं आपको सुझाव दूँगा कि आप उन्हें कहो कि तुम सब अपना-अपना भाग्य लेकर दुनिया में आये हो। बाप के कन्धे पर बैठकर संसार देखने की कोशिश मत करो। अब अपने पाँवों पर खड़े होकर देखने की कोशिश करो। खुद कमाओ और अपना रास्ता बनाओ। फिर भी अगर आप देना ही चाहते हैं तो उन्हें दे देना। उन्हें धन भी देना और अन्य सम्पदा भी।

लेकिन, विवेकपूर्वक यह सोचकर देना कि कितना भाग उनका है और कितना समाज का, कितना परमात्मा के लिए और कितना आत्मकल्याण के लिए। आप थोड़ा समय निकालकर यह विभाग अवश्य कर लेना। देखिए! इन अपनों की शिकायतें तो बनी ही रहेंगी, उन्हें चाहे सब कुछ दे डालो और ख़ुद ख़ाली हाथ हो जाओ। यह भी ध्यान रखना कि आप जिस दिन ख़ाली हाथ हुए, उस दिन यह कोई भी आपके साथ खड़े नहीं होंगे। इसलिए प्रभु के इस उद्यान को सुन्दर बनाने के हरसंभव प्रयास करो और जितना उचित हो, उतना अपनी संतानों के लिए भी कर जाओ।

आपकी सबसे बड़ी ताकत क्या है?

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