समझते हैं सोशल मीडिया का मनोविज्ञान | सुरक्षित इंटरनेट दिवस विशेष | Sudhanshu ji Maharaj

समझते हैं सोशल मीडिया का मनोविज्ञान | सुरक्षित इंटरनेट दिवस विशेष | Sudhanshu ji Maharaj

Safer Internet Day 2022

चिंतन शुभ हो अथवा अशुभ, जीवन पर प्रभाव डालेगा ही। शुभ होगा तो सकारात्मक और अशुभ होगा तो नकारात्मक जीवन बनेगा। जैसी सोच वैसा जीवन वाली कहावत इसीलिए सर्वविदित है। क्योंकि हर चिंतन चेतन से लेकर अवचेतन मन तक को झकझोर कर रख देता है। अवचेतन मन में उतरे भाव व विचार उसी स्तर के व्यवहार एवं जीवन का निर्माण करते हैं।

वातावरण ऐसा जो कल्याणकारी समाज का निर्माण करे

मनोविज्ञान भी कहता है कि सकारात्मक-शुभ, कल्याणकारी, सुखमय भावों से ओतप्रोत विचार, दृश्य, घटनाओं के दर्शन-श्रवण एवं उस पर सतत चिंतन-मनन से मन, बुद्धि, चित्त, हृदय एवं अंतःकरण सहित सम्पूर्ण जीवनकोश शुभ व सुख-संतोष-शांति, पवित्रता से भरने लगता है। मनोविश्लेषक कहते हैं कि कल्याणकारी भावों से जुडे़ सत्संग, स्वाध्याय, भक्ति , महापुरुषों की वाणियां-सदप्रेरणायें, धर्म-भक्तिमय भावनायें मन-मस्तिष्क को जितना गहराई तक प्रभावित करेंगी, उतनी ही शीघ्रता से जीवन की चिंतायें मिटती हैं, चित्त से लेकर मन-मस्तिष्क में मानसिक-आध्यात्मिक शक्ति भरती है तथा शारीरिक क्षमता में रचनात्मक ऊर्जा जागती है। अंतःकरण में उत्साह और आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन सुखद, प्रसन्नचित्त, समृद्ध व शांतिमय बनता है। यही नहीं इससे स्वयं सहित परिवार-समाज एवं अन्य निकटस्थ दूसरे लोगों के प्रति कल्याणकारी-हितकारी भाव संवेदनायें उत्पन्न होती हैं, वैसा ही वातावरण बनता है, जो कल्याणकारी समाज का निर्माण करता है।

सोशल मीडिया का  दोहरापन

आज कल हम विचारों के युग में जी रहे हैं, मीडिया व सोशल मीडिया का जमाना है, जो हमारे चिंतन, सोच एवं व्यवहार को हर क्षण अपने विविध प्रकार के विचारों-संवेदनाओं वाले दृश्यों, घटनाओं, धारावाहिकों, कार्यक्रमों आदि के माध्यम से प्रभावशाली ढंग से प्रभावित करते रहते हैं। क्योंकि अपने सीरियलों, विश्लेषणों, कार्यक्रमों के सहारे सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार की प्रेरणायें जनमानस में जगाने एवं तदअनुसार समाज का वातावरण बनाने में ये सफल साबित होते आ रहे हैं, इसलिए मनोवैज्ञानिक मीडिया-सोशल मीडिया के दोहरेपन से चिंतित भी हैं। ऐसे में व्यक्ति को बहुत ही सावधान होकर इसके संदेश को ग्रहण करने की जरूरत रहती है।

जरूरत है सोशल मीडिया कि?

“जैसे बांस से बांसुरी बनती है और बांस से डंडा भी बनता है, पर दोनों के प्रयोग व प्रभाव भिन्न हैं। टीवी आदि पर

मारधाड़, कलह-क्लेश, ईर्ष्या-द्वेष का ही चलन तो सामान्यतः देखने को मिलता है। यद्यपि सोशल मीडिया व टीवी आदि मीडिया का सही रूप भी देखने को मिलता है, फिर भी न जाने कैसे-कैसे सीरियल चलते हैं, जिसमें लोगों को अपनों के साथ ही दांव-पेंच लगाने की कला सिखा दी जाती है, बूढ़े-बूढ़े तक अपनों के साथ नकारात्मक दांव चलने लगते हैं। इसी प्रकार हमारी सोशल मीडिया है, पर जरूरत है कि इसे बांसुरी बनाने की कोशिश करें। इससे सदभाव संवेदनायें जगाने वाले महानपुरुषों, संतों का संदेश, सत्संग आदि घर बैठे सुन सकें, तो यह बांसुरी की भूमिका में काम करेगी और घर-परिवार को इससे स्वर्ग व सुखद बातावरण दिया जा सकेगा। अतः आज सावधान रहकर मीडिया-सोशल मीडिया के सकारात्मक उपयोग करने की जरूरत है।“

जिस सोशल मीडिया और मीडिया

वास्तव में चिंतन करें तो जिस सोशल मीडिया और मीडिया को हर क्षण हमारे लोग देखते रहते हैं वह आज सकारात्मकता कम, नकारात्मकता के द्वारा भय, अभाव व अनौचित्य को अधिक परोस रहा है। जो देखने वाले के अवचेतन मन में जाकर बैठता है, इस प्रकार धारावाहिक आदि में पात्रें के सहारे दर्शायी गयी दूसरे की काल्पनिक पीड़ाओं को हम अपने मन व भावनाओं में बैठाकर उस सीरियल की अगली कड़ी को लेकर रातों दिन सोचते रहते हैं कि कल बेचारे के साथ क्या होगा? जबकि वह समस्या किसी दूसरे की है, वह भी काल्पनिक। जिसे देखने के बाद शंकायें, आशंकायें हम दिनभर करते रहते हैं। इस प्रकार हम जैसे-जैसे उनके प्रति सोचते हैं, जिस-जिस भावतंरगों वाली गहराई के साथ सोचते हैं, वे विकृत भाव तरंगें हमारे अर्थात देखने वाले के सबकॉन्शस अवचेतन मन में जाकर बैठती रहती हैं।

चिंतन का विज्ञान

चिंतन का विज्ञान कहता है कि हम जिन-जिन चीजों को, जिस-जिस तीब्रता वाली फिक्वैंसी एवं जिस इमोशन की गहराई वाली भाव तरंगों के साथ सोचते हैं, वे सब उसी तीव्र ऊर्जा के साथ हमारे अवचेतन मन में जाकर बैठकर उसी तरह की विश्व ब्रह्माण्ड से ऊर्जा की तरंगे अपनी ओर खीचने लगती हैं। सकारात्मक भावों से सकारात्मक और नकारात्मक भावनाओं के साथ सोचने से नकारात्मक ऊर्जा वाली तरंगे विश्व ब्रह्माण्ड से आकर्षित होना प्रारम्भ हो जाता है। ध्यान-योग गुरु डॉ- अर्चिका दीदी कहती हैं कि ‘‘व्यक्ति के चिंतन में समाई लड़ाई-झगडे़ वाली भावसंवेदनायें, लड़ाई-झगडे़ वाले वातावरण का निर्माण करने लगती हैं, डर वाले भावों के चिंतन से व्यक्ति के जीवन में डर की तरंगें ब्रह्माण्ड से आकर्षित होने लगती हैं।’’ अर्थात जैसी भावतरगें हम अपने अंतःकरण से प्रेषित करते हैं, उसी प्रकार की तरंगे अनेक गुणा होकर सामने आने लगती हैं। ऐसे में हम स्वयं सावधानी बरतें, साथ ही अनुभव करें कि विचारों की ये नकारात्मक ऊर्जा कहीं हमारे जीवन को गलत रास्ते पर ले जाकर तो नहीं खड़ा कर रही है?

अवचेतन मन का विज्ञान है

अवचेतन मन का विज्ञान है कि व्यक्ति रात में सोते समय जिस तरह की जिन्दगी वाली इमोशन्स से अपना रिश्ता जोड़कर नींद में जाता हैं, वैसी ही जिन्दगी वह आकर्षित एवं आमंत्रित करने लगता है। अतः  आवश्यक है कि मीडिया एवं सोशल मीडिया द्वारा परोसी जाने वाली ऐसी चीजों को देखने से बचें, जिन्हें अपनी जिन्दगी में हम लाना नहीं चाहतें, जिस दुखद पहलू से जीवन को दूर रखना चाहते हैं। अपितु ऐसी चीजों पर अपना मन एवं माइंड फोकस करें, जो आपकी जिन्दगी में खुशी-सुख-शांति-संतोष लेकर आये। यद्यपि युग अनुसार सोशल मीडिया व मीडिया से हम मुंह मोड़ भी नहीं सकते, अतः इस माध्यम का उपयोग ऐसी चीजों के लिए करें जिससे सकारात्मकता जीवन में आये। इसका उपयोग करके हम संतों, महापुरुषों के संदेश, प्रेरणायें, धर्म प्रिय शुभ चीजें अपने जीवन में स्थापित कर सकते हैं। विश्व जागृति मिशन ने सोशलमीडिया आदि प्लेटफार्म की शक्ति को घर बैठे लोगों की जिन्दगी को सुखी-आनन्दित बनाने की ओर मोड़ा है, इस प्रकार बांस से बांसुरी वाली कहावत चरितार्थ की है। आप भी मिशन के विविध सोशल मीडिया प्लेटफार्म से जुड़कर जीवन को धन्य बना सकते हैं।

Shiv Shakti Mahotsav 20221

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *