प्रभु ये तन निरोग रहे, मन शांत रहे, हृदय प्रेम से भरपूर हो, बुद्धि सुबुद्धि बनी रहे

प्रभु ये तन निरोग रहे, मन शांत रहे, हृदय प्रेम से भरपूर हो, बुद्धि सुबुद्धि बनी रहे

ये तन निरोग रहे, मन शांत रहे, हृदय प्रेम से भरपूर हो, बुद्धि सुबुद्धि बनी रहे

प्रभु के जिस नाम को आप जपते हैं उसे मन ही मन तीन बार जाप कीजिये। मन ही मन भगवान से कहिए हे प्रभु मैं तेरा हूं, मैं तेरा हूं, मैं तेरा हूं और फिर कहना है हे प्रभू तुम मेरे हो, मेरे, मेरे। मैं आपकी शरण में हूं, सब जग का उद्धार करने वाले प्यारे ईश्वर मेरा भी उद्धार करो, मेरा कल्याण करो।

ये तन निरोग रहे, मन शांत रहे, हृदय प्रेम से भरपूर हो, बुद्धि सुबुद्धि बनी रहे और ये तन जीवन के अंतिम भाग तक भी सक्रिय रहे, स्वस्थ रहे, मैं इस दुनिया में सहारा दे सकूं, पर कभी भी मुझे सहारे की आवश्यकता न पड़े।

मैं आत्मनिर्भर स्वयं सेवक बनकर जी सकूं। एक उत्तम कर्म योगी का जीवन जियूं, धन में भी सम्पन्नता, मन में भी शांति, हृदय भी प्रेम से भरपूर और बुद्धि रचनात्मक कार्यों निर्णय करने के लिए सदैव तत्पर, मेरी आत्मा आपके आनन्द से भरपूर रहे,

मेरा घर-परिवार प्रेम से सुख-शांति से भरा-पूरा रहे और मैं चारों ओर इस संसार में सुख-शांति को फैला सकूं। उदासी को हटा सकूं, भगवान मुझे आशीष दीजिए।
¬ शांतिः शांति शांतिः ¬

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