मंत्रों के आध्यात्मिक प्रयोग की बेला नवरात्रि | Chaitra Navratri 2022 | Sudhanshu Ji Maharaj

मंत्रों  के आध्यात्मिक प्रयोग की बेला नवरात्रि

मंत्रों  के आध्यात्मिक प्रयोग की बेला नवरात्रि

नवरात्रों में माँ  दुर्गा की साधना, जप, तप, अनुष्ठान शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक उन्नति-प्रगति के उन्नायक होते हैं। नौ को संस्कृत में नव कहा गया है, जिसका अर्थ नवीनता से है। नवरात्रों में माँ  जगदम्बे के नौ रूपों की पूजा उपासना साधक को नव ऊर्जा से भर देता है। चैत्र मास के वासंतिक नवरात्रों के समापन पर श्री रामनवमी का पर्व प्रभु श्रीराम के प्राकट्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीराम की कृपा प्राप्ति का योग भी नवरात्रि प्रदान करती है।

चित्त शुद्धि का समय

आदिशक्ति की आराधना द्वारा चित्त शुद्धि का पर्व है नवरात्रि। यद्यपि वर्ष में 14 प्रकार की रात्रियों का वर्णन आता है जैसे वीररात्रि, महारात्रि, घोररात्रि, क्रोधरात्रि, अचलरात्रि, दिव्यरात्रि, विष्णुरात्रि, मृतसंजीवनी रात्रि, सिद्धरात्रि, गणेशरात्रि, देवीरात्रि आदि। इन 14 रात्रियों में नवरात्रि की बड़ी महिमा है। नौरात्रि के दिन एवं रात्रि को आदिशक्ति जगद्जननी का स्वरूप माना गया है। वैसे 14 रात्रियों का मुहूर्त काल साधना की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, परन्तु नौरात्रि काल का प्रत्येक क्षण साधना एवं माता के कृपा की दृष्टि से अनंतगुणा शुभ फल प्रदान करने वाला बताया गया है।

इस अवधि में गुरुमंत्र, ईष्ट मंत्र जप करना अनन्त गुना फल प्रदान करता है। इस अवधि में साधक आदिशक्ति माँ  भगवती व भगवान श्रीराम आदि अपने अपने आराध्य के प्रति समर्पण भाव रखकर उन्हें अपना ईष्ट मानते हुए भावना, मंत्र, उपासना, उपवास एवं प्रार्थना द्वारा आत्मविकास, आत्मपरिष्कार, व्यक्तित्व विकास के लिए प्रखर आध्यात्मिक पुरुषार्थ सम्पन्न करते हैं। इससे जीवन में सद्गुणों के विकास में मदद मिलती है और जीवन में सुख, शांति, समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। यह काल विशेष साधनाओं के लिए महत्वपूर्ण माना गया है, आत्म जागरण इसका अंतिम लक्ष्य है, इसलिए नवरात्रियां साधना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

दो ऋतुओं का संधिकाल

यह दो ऋतुओं के संधिकालों के मिलन का पर्व भी कहलाता है। प्रत्येक वर्ष एक ऋतु विदा होने व दूसरी ऋतु के प्रवेश की अवधि पर नवरात्रि आती है। दो ऋतुओं के मिलन वेलायें ऊर्जा प्रवाह के महत्वपूर्ण अवसर माने जाते हैं। इस वसंतकालीन नवरात्रि में ग्रीष्म ऋतु का प्रवेश हो रहा है। शरीर विज्ञान की दृष्टि से देखें तो मानव शरीर में समाहित तम एवं आत्मा के सत तत्व के मिलन से रजोगुण प्रेरित मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि में इच्छा, आकांक्षा, तृप्ति, अहंकार, महत्वाकांक्षा, संग्रह, हर्ष, स्पर्धा आदि आंतरिक प्रतिक्रियायें इस ऋतु में उत्पन्न करती हैं। साधना आदि विधियों से इन्हीं के परिमार्जन की परम्परा है, इससे कल्याण का मार्ग सहज प्रशस्त होता है।

दुर्गा सप्तशती का पाठ

नवरात्रि काल में माँ  आदिशक्ति के सानिध्य में विकारों को निर्मूल करने वाली शक्ति रूपी माँ की आराधना करते हैं। यद्यपि नौरात्रि की कोई सुनिश्चित पूजा पद्धति नहीं होती। यही कारण है हर साधक अपने संकल्प एवं श्रद्धा अनुसार कोई भगवान श्रीराम के चरित का मानस पाठ पारायण करता है, तो कोई श्रीमद्भागवत्, शिवपुराण पाठन व श्रवण जैसी अनेक परम्परायें समाज में प्रचति हैं। नवरात्रि काल में ही कुमारी पूजन से लेकर तंत्र साधना की भी परम्परायें प्रचलित हैं। माँ  दुर्गा के उपासक श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं, उनकी मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का पाठ जीवन में आने वाले कठिन से कठिन संकटों का विनाश करता है।

वासंतिक नवरात्र

यह वासंतिक नवरात्र है, इस नवरात्र का शुभारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। मानव जीवन में नौ के अंक का महत्वपूर्ण योग है। प्रत्येक मनुष्य नव मास तक अपनी जन्मदात्री माँ  के उदर में रहकर जीवन यात्र को पकाता है, जीवात्मा गर्भकाल में नौमास के कष्ट सहकर जीवन में नवीनता पाती और नये जीवन का उत्सव मनाने के लिए योग्य बनती है। नवरात्र वास्तव में साधनामय नौ रातों का उपयोग करके शरीर के भीतर की जीवनी शक्ति को जगाकर उसमें नवदुर्गा की प्रतिष्ठा करते हैं। इस प्रकार नवरात्र मन-वचन-कर्म से पवित्र एवं ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को शुद्ध करने का भी पर्व है, जिससे साधक का सोया भाग्य जगता है।

नवरात्रों से अभिप्राय

नवरात्रों में माँ  दुर्गा की साधना, जप, तप, अनुष्ठान शारीरिक, मानसिक और आत्मिक उन्नति-प्रगति नवीनता लाने में सहायक होते हैं। नौ को संस्कृत में नव कहा गया है, जिसका अर्थ नवीनता से है। नवरात्रों में माँ  जगदम्बे के नौ रूपों की पूजा-उपासना साधक को नव ऊर्जा से भर देता है। चैत्र मास के वासंतिक नवरात्रों के समापन पर श्री रामनवमी का पर्व प्रभु श्रीराम के प्राकट्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीराम की कृपा प्राप्ति का योग भी यह प्रदान करता है।

इसलिए इस अवधि की रात्रियां साधना के लिए उत्तम मानी जाती हैं। विश्व जागृति मिशन के लाखों साधक अपने सदगुरु के आशीर्वाद के साथ नवरात्रि वेला में माँ दुर्गा, श्रीराम अथवा सदगुरु के दिये मंत्र का अनुष्ठान करके आध्यात्मिक उपलब्धियों से अपने को जगायें तथा श्री, समृद्धि, ऐश्वर्य, सुख-शांति का विशेष लाभ पायें, नवरात्रि जैसे विशिष्ट अवसर का लाभ लें और जीवन में आध्यात्मिक गौरव जगायें।

Chaitra Navratri       ज्ञान शक्ति, इच्छा शक्ति व क्रिया शक्ति को जाग्रत करने का समय

1 Comment

  1. Ashok R Sharma says:

    Samay batayen ,Tarika bhi batayen

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