प्रकृति परमात्मा का अनुपम उपहार है | Atmachintan | Sudhanshu Ji Maharaj

प्रकृति परमात्मा का अनुपम उपहार है | Atmachintan | Sudhanshu Ji Maharaj

प्रकृति परमात्मा का अनुपम उपहार है

प्रकृति परमात्मा का अनुपम उपहार है

प्रकृति परमात्मा का अनुपम उपहार है

प्रकृति हमें क्या कुछ देती है! जिसका पता भी नहीं चलता ,प्रकृति परमात्मा की अनुपम देन है! पेड़ पौधे, नदियाँ, पहाड़, फूल फल!  यह सब प्रकृति की उपलब्धियां हैं जिसका हमें भरपूर आनंद लेना चाहिए!

प्रकृति से जुड़ने का अर्थ है! अपने मन को प्रभु से जोड़ना क्योंकि उसकी देन अद्भुत है। किस प्रकार वह बीज से वृक्ष और वृक्ष से फिर बीज- इसी क्रम को संचालित रखता है। एक बीज वृक्ष का रूप धारण करता है, फिर फूल आते हैं, फल आते हैं, उसके अंदर बीज होते हैं और वही बीज धरती पर गिरकर पुनः वृक्ष बनता है!

संसार का क्रम टूटता नहीं! समुद्र का जल वाष्प बनकर बादल बन जाता है, वही बादल वर्षा के माध्यम से जल बरसाकर समुद्र को वापस करते हैं! इसी क्रम का नाम प्राकृतिक चक्र है!

प्रकृति की रचना

‎प्राकृतिक के इस रूप को हमें बारीकी से देखना चाहिए कि कैसे वह रचनाकार प्रकृति की रचना करता है! और फिर अपने में ही समाहित कर लेता है! जब हम इस घटना को देखेंगे तो हमारा हृदय कृतज्ञता से भर उठेगा उस परम के प्रति!

इसलिए हमें अपनी दिनचर्या में प्रकृति के बीच जाने का समय अवश्य ही निकालना चाहिए! सुबह सैर करने आप किसी पार्क में जाते हैं! तो खिलते हुए फूल, चहकते हुए पक्षी, कलरव करती जलधारा; इन सबको देखकर हमारा हृदय आह्लादित हो उठता है!

अगर आप अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना चाहते हैं, तो प्रकृति के बीच अवश्य जाइए! आपकी सारी निराशा , चिंता, बीमारियां स्वतः दूर होने लगेंगी और आप सकारात्मकता से भर उठेंगे क्योंकि दवा के माध्यम से आपको जो लाभ मिलता है वह स्थायी नहीं होता!

परमात्मा की महिमा देखें

जब आप प्रकृति से जुड़ते हैं! तो उस रचनाकार की रचना से प्रभावित होते हैं। कैसे उसने समुद्र के खारे पानी को नारियल के अंदर मीठा बनाकर भर दिया, कैसे फल पकाकर पेड़ पर डंठल से लटका दिये की यह मेरे बच्चों के लिए हैं – कितनी महिमा देखें वह अनंत है!

इसलिए इन कंकरीट के जंगल से बाहर निकलकर प्रकृति का आनंद लेना हमारे लिए अति आवश्यक है क्योंकि हमारे अंदर की निराशा को तोड़कर स्वस्थ, आनंदित एवं स्फूर्ति से युक्त करने के लिए यह रामबाण का कार्य करती है!

परमात्मा के मनोरम दृश्यों को देखते ही हम एक नवजात बालक की तरह हो जाएं! जो किलकारी मारता ख़ुशी से भरपूर रहता है। उसे न भूत की चिंता न भविष्य की, वह वर्तमान में जीकर आनंदित रहता है! यही स्थिति आपकी होती है! जब आप प्रकृति के बीच अपने को हल्का कर प्रभु की गोद में समर्पित हो जाते हैं। ब्रह्मांड की शक्तियाँ हमें ऊर्जा से भरपूर कर नवीनीकरण कर देती हैं!

आत्मचिंतन के सूत्र!,   आत्मचिंतन

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