जीवन की सफ़लता के बदलते मापक के साथ हम भी बदलें | Sudhanshu Ji Maharaj

जीवन की सफ़लता के बदलते मापक के साथ हम भी बदलें | Sudhanshu Ji Maharaj

जीवन की सफ़लता के बदलते मापक के साथ हम भी बदलें

जीवन की सफ़लता के बदलते मापक के साथ हम भी बदलें

हर कोई अपने-अपने ढंग से सफलता पर चिंतन करता है। कोई अधिक धन-संसाधन होने को सफलता का आधार मानता है, तो कोई उच्च पद और प्रतिष्ठा को, कोई सामाजिक लोकप्रियता, परिवार के साथ घूमना-फिरना, अच्छे होटल में खाना और मनमाने कपडे़ पहनना, कुछ लोग उन्मुक्त बेरोकटोक जीवन को सफलता का आधार मानते हैं। इसी समाज में ऐसे भी व्यक्ति हैं, जो इन सबसे अलग हटकर त्याग-बैराग्य, भक्ति-साधना-संयमित, संग्रह रहित व आध्यात्मिक जीवन को सफल होना मानते हैं। इन सबमें उद्देश्य एक ही है कि जीवन के लिए ‘‘खुशी व प्रसन्नता ’’ की तलाश करना। अर्थात हंसी-खुशी-प्रसन्नता  भरा जीवन जीना, सफल जीवन की पहचान है। इन दिनों एक बड़ा वर्ग वैश्विक स्तर पर उभर रहा है, जिसमें एक नयी सोच जन्म ले रही है कि क्यों न ‘‘प्रसन्नता एवं खुशी’’ को ही जीवन की सफलता का लक्ष्य बना लिया जाय?

सफलता का आशय खुशियों भरे जीवन

विश्व के अधिकांश लोग अब मानने भी लगे हैं कि वही व्यक्ति सर्वाधिक सफल है, जिसके पास भरपूर मात्र में शांति, सुकून, संतोष, प्रसन्नता व ख़ुशी  है। विगत दिनो एक सर्वे में बताया गया कि ‘‘भारत के लोगों में भी एक बड़ा वर्ग समूह में शांति-सुकून व प्रसन्नता के प्रति जागरूकता बढ़ी है, रिपोर्ट के अनुसार करीब 72 प्रतिशत भारतीयों ने सफलता का आशय खुशियों भरे जीवन को बताया।

इसके बावजूद बड़ा प्रश्न है कि इस खुशहाली का आधार क्या होना चाहिए। इस संदर्भ में सबकी अलग ढंग की सोच है। कुछ विचारक कहते हैं कि “एक सफल जीवन वह है, जिसमें दूसरों के सपनों का पीछा करने के बजाय, स्वयं को समझने और उस स्वनिर्मित अवधारणा पर आगे बढ़ाने के साथ जीवन जीने से है। जबकि कुछ अन्य जीवन के कई बहुआयामी क्षेत्रें में प्राप्त सफलता की कहानियों में संतुलन होने स्थापित होने को सफलता मानते हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि ‘‘यदि व्यक्ति के व्यक्तिगत से लेकर पारिवारिक स्वजनों के साथ रहने वालों के बीच जीवन जर्जर है, तो उसे अपने व्यावसायिक जीवन में वास्तव में सफल नहीं माना जा सकता है।

 भौतिक साधनों की होड़ से बचे

दरअसल भूमंडलीकरण और उदारीकरण के दौर के साथ लोगों के जीवन में पैसे की बरसात तो हुई, लेकिन परमात्मा द्वारा दिया गया अनमोल जीवन दांव पर लग गया। क्योंकि कार्य करने की नई व्यावसायिक शैली और सोच के चलते पैसे के पीछे भागने के कारण लोगों का मन, जीवन शैली, स्वास्थ्य ख़राब  हुआ, पारिवारिक व सामाजिक जीवन तक चौपट हो गया। लोगों ने पैसे खूब हासिल किए, पर उसका ढंग से उपभोग नहीं कर पाए। इस पीढ़ी के इन कष्टकर पक्षों से लोगों ने सबक लिया। इसलिए अब नई पीढ़ी चाहती है कि उसका पारिवारिक जीवन सुखद हो, उसे स्वतंत्रता का मौका मिले। नई पीढ़ी की इस नई सोच को प्रोत्साहित करते हुए दुनिया की अनेक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं ने भी घोषित-अघोषित रूप से एक वैचारिक आंदोलन चलाया, जिसमें भौतिक साधनों की होड़ से बचने, स्वस्थ रहने और जीवन में संतुलन स्थापित करने पर जोर दिया जा रहा है।

‘‘भारतीय आध्यात्मिक चिंतन धारा में श्रेष्ठ की दिशा में बढ़ते हुए व्यक्ति को स्वयं का प्रतिस्पर्धी माना गया है। जिससे वे अपने द्वारा गढ़े गये मानकों को हासिल करके संतुष्ट हो, निज स्वभाव में स्थिर होकर जीवन की सफलता का नया आधार बनाता चले। वास्तव में जीवन को लेकर भारतीय ऋषियों की यही सोच सदियों से रही है। पर व्यक्ति दुखी  तब होता है जब उसके जीवन का कोई निश्चित लक्ष्य नहीं होता, अपितु एक लक्ष्य को सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद, वह बिना सोचे समझे फिर उसी दौड़ के साथ दूसरे लक्ष्य की ओर दौड़ पड़ता है। परिणामतः अस्पष्ट जीवन की दौड़ के चलते उसकी जीवन ऊर्जा चुकती जाती है और अंततः वह जीवन भर अपने को एक असफल व्यक्ति के रूप में ही देख पाता है। अंत में हताशा और निराशा का शिकार होकर दीन-हीन अभावग्रस्त व्यक्ति भर बनकर रह जाता है। अतः स्पष्ट है कि व्यक्ति का अपने द्वारा निर्धारित श्रेष्ठ मानकों पर टिके रहना ही सफलता का आधार और इसी से जीवन में खुशी पाना सम्भव है।

झोपड़ी में जीवन जीने को अपनी सफलता माना

वास्तव में चाणक्य के जीवन लक्ष्य को हम उदाहरण स्वरूप ले सकते हैं। उन्होंने अखण्ड भारत के निर्माण में बाधक राजवंशों को पदच्युत करके, विदेशी आक्रमण से देश को मुक्त करना और टुकड़ों में बटे भारत को अखण्ड लक्ष्य बनाकर उन्होंने समय, परिस्थितियों को नजरंदाज करते हुए अपने उद्देश्य अनुरूप संपूर्ण राष्ट्र का अखण्ड निर्माण किया। इसके लिए उन्होंने लोगों के मन में राष्ट्रीय चेतना जगाई, अंत में लक्ष्य पूर्ण करके चंद्रगुप्त के हाथ सत्ता सौंप राजसत्ता के ऐश्वर्यों को त्यागते हुए जंगल में एक साधारण मनुष्य की तरह झोपड़ी में जीवन जीने को अपनी सफलता माना। काश चकाचौंध में अंधभीड़ की तरह भागती हमारी पीढ़ी स्वनिर्धारित जीवन संकल्पों की ओर मुड़ सके, तो उसे सफल कहलाने के लिए दूसरों का मोहताज नहीं होना पड़ेगा। तब लोगों के जीवन से सुख-प्रसन्नता  भी दूर नहीं रह पायेगा। आइये! सफलता के नव मानकों को स्वीकार करें, जीवन को सुख-शांति-सौभाग्य से भरे।

1 Comment

  1. Very nice thoughts Gurudev guidance is wonderful in future for Hole world

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