जागृत आत्माओं में आज भी क्रांति की हूक जगाते : नेता जी सुभाष चन्द्र बोस

जागृत आत्माओं में आज भी क्रांति की हूक जगाते : नेता जी सुभाष चन्द्र बोस

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा- जय हिंद

23 जनवरी 1897 को कटक शहर में जन्में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाकर भारतीयों में आजादी के आंदोलन का जज्बा जगाया। देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए कुशल रणनीति अपनाते हुए जापान के सहयोग से आजाद हिन्द फौज का गठन किया। उनके द्वारा ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा’ व ‘जय हिंद’ का दिया गया नारा आज भी भारतीयों में नई ऊर्जा का जागरण करता है।

आजादहिंद सेना से कहा दिल्ली चलो

बोस के नेतृत्व के प्रति अगाध जनश्रद्धा-विश्वास के चलते भारतवासियों में वे ‘नेता जी’ से संबोधित होने लगे। 5 जुलाई 1943 का सिंगापुर के टाउन हाल के सामने सुप्रीम कमाण्डर रूप में अपनी गठित ‘आजादहिंद सेना’ के सामने किया गया ‘दिल्ली चलो’ का उद्घोष आज भी क्रांति की हूक जगा देता है। इस प्रकार अंग्रेजों की दासता से मुक्ति का प्रतीक ‘‘स्वतंत्र भारत की प्रथम अस्थायी सरकार’’ बनाने का श्रेय नेता जी को जाता है। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस द्वारा आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से गठित सरकार को जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशों की सरकारों ने मान्यता दी थी।

स्वामी विवेकानन्द और महर्षि अरविन्द घोष थे आदर्श

पिता जानकीनाथ बोस और माँ प्रभावती की संतान रूप में जन्में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर लिया था। सुभाष जी के दिलो-दिमाग पर स्वामी विवेकानन्द और महर्षि अरविन्द घोष के आदर्शों की धुन सवार थी, अतः आईसीएस बनकर वह अंग्रेजों की गुलामी करने से मीलों दूर थे, फिर भी पिता की इच्छा को दृष्टि में रखते हुए सुभाष आईसीएस बनें, उन्होंने 1920  में वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त किया। तत्पश्चात 22 अप्रैल 1921 को आईसीएस से त्यागपत्र दे दिया और भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में पूरे जज्बे के साथ जुट गये।

उनकी हूक, जज्बा सतत देशवासियों के हृदय में धड़कता है

6 जुलाई 1944 को नेता जी द्वारा रंगून रेडियो स्टेशन से राष्ट्रीय विजय के लिये महात्मा गांधी से मांगा गया आशीर्वाद और शुभकामनाओं वाले प्रसारण की गूंज कभी भी अपने महानायक को भारतवासियों के अंतःकरण से मरने नहीं देगी। भले आज शरीर सहित उनका हमारे बीच होना विवाद का विषय है, लेकिन उनकी हूक, जज्बा सतत देशवासियों के हृदय में धड़कता है, इसी जज्बे के साथ देश 23 जनवरी 2022 को नेताजी की 126वीं जयंती मना रहा है। करोड़ों विश्व जागृति मिशन परिवार की ओर से सदी के इस महानायक को प्रणाम है।

1 Comment

  1. It is only right that Modi government at Centre is installing his statue in India Gate area, for he was/is Amar Jawan in true sense. He did what others could not even think of doing. Subhash Chandra Bose deserved a huge credit for our independence in 1947.
    We should get inspired from Netaji.

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