जागो रे जिन जागना, अब जागन की बार | आत्मचिंतन के सूत्र | Sudhanshu Ji Maharaj

जागो रे जिन जागना, अब जागन की बार | आत्मचिंतन के सूत्र | Sudhanshu Ji Maharaj

जागो रे जिन जागना, अब जागन की बार

जागो रे जिन जागना, अब जागन की बार

सदगुरु जगा रहे हैं सोये हुए मनुष्यों जाग जाओ – मतलब नीद से जागना नही है , सदगुरु इस संसार से जगा रहे है !
सारे मनुष्य इस संसार मे सांस लेने वाले मुर्दे के समान हैं जो गुरु की प्रेरणा से नही जुड़े – प्रतिदिन वही कार्यक्रम खाना पीना, सोना जागना, नित्य कार्यों में उलझते हुए अपनी दिनचर्या पूर्ण करना – यही दिनचर्या !

परंतु जब किसी महान पुरुष, जाग्रत आत्मा अर्थात गुरु से मिलना हो, उनके प्रेरक वचन पर व्यक्ति अनुशरण करे तो जीने का ढंग बदल जाता है -तब हमें वास्तविक ज्ञान का परिचय मिलता है कि जिंदगी जीने का ढंग क्या है ! यूं तो सभी योनियों में जन्मे हुए जीव अपना जीवन इसी तरह जीवन जीते है चाहे पशु योनि हो या कीट पतंग, फिर मनुष्य का चोला किस लिए मिला है यदि इस योनि का लाभ नही ले पाए तो जीवन निरर्थक है !

फिर क्या जागे नानका जब सोवे पाँव पसार

इसलिए गुरुदेव की पंक्तियों को याद रखो -जागो रे जिन जागना अब जागन की रात – फिर क्या जागे नानका जब सोवे पाँव पसार !
इस मोह निद्रा से जागो, अभिमान से जागो, व्यर्थ की चर्चा निंदा चुगली, अहंकार में डूबे रहो, स्वयम को सबसे श्रेष्ठ साबित करने की प्रवृति :: इन सबसे जागना है !

अपने हर लम्हे को कीमती बनाना है , भक्ति, सेवा, सिमरन इनका सहारा लेकर क्योकि यह समय दुबारा नही मिलने वाला – पेड़ से पत्ते झड़ जाए तो दुबारा नही लगते, नदी का पानी बह जाए तो लौट कर नही आता एक बार अर्थी घर से निकल जाए तो लौट कर नही आता- इसी प्रकार जो अनमोल खज़ाना समय का परमात्मा ने हमे दिया है उसको खो मत जाने देना !

इसलिए जो जीवन के लम्हें , जो सांसे, हमे मिली है उसका भरपूर उपयोग करना है और अपने लक्ष्य को पहचानना है – लक्ष्य है परम आंनद, परम शांति, जो परमाननद यानी प्रभु के चरणों में जाकर ही प्राप्त होगी !

सदगुरु का मार्मिक संदेश है: मैँ निशा बनकर तुम्हे सोने ना दूंगा : मैँ उषा बनकर तुम्हे जगाने आया हूं ! यदि इतने प्रबुद्ध, जाग्रत सदगुरु की शरण मे जाकर भी हमने स्वयम को नहीं बदला – उनकी शिक्षाओं का पालन नही किया तो मानो अनमोल हीरे जैसा जीवन कौड़ी भाव खो दिया । इसलिए जागना है और अपना कल्याण इसी जन्म में करना है !

हरि ॐ || आत्मचिंतन

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