आत्मचिंतन के सूत्र: |उषर्बुध होकर जीवन जीने के लिए कुछ सूत्र! | Sudhanshu Ji Maharaj

आत्मचिंतन के सूत्र: |उषर्बुध होकर जीवन जीने के लिए कुछ सूत्र! | Sudhanshu Ji Maharaj

आत्मचिंतन के सूत्र

आत्मचिंतन के सूत्र

आत्मचिंतन के सूत्र:

उषर्बुध होकर जीवन जीने के लिए कुछ सूत्र!

जड़े काटने से पेड़ ऊंचाई नहीं पाते। जब आप अपने आप को कोसते हो तो आप भी अपनी जड़े खुद काट रहे हो -यह ध्यान में रखें। खुद को कोसना छोड़े। अपने आप को बढ़ने दे। भगवान की कृपा का सहारा ले और आगे बढ़े, हर दिन अच्छा है। जिसका संकल्प , आत्मचिंतन, ऊंचा हो और संतुलन अद्भुत हो तो वह मनुष्य किसी भी परिस्थिति में टूट नहीं सकता। गीता आपको समत्व की- संतुलन की शिक्षा देती है।

गीता ज्ञान की भिक्षा देती है- भोजन देती है। ज्ञान का अमृत ही भोजन है। कोई दिन ऐसा ना हो जिस दिन आपने कुछ सीखा ना हो, जाना न हो, मस्तिष्क का नवीनीकरण न किया हो। जिसका दिमाग नया बने उसकी जिंदगी नयी बनती है।

जिज्ञासा और जिजीविषा कभी खत्म ना होने दें। एकांत में पुस्तकों के माध्यम से महान पुरुषों को मिलें – इससे बढ़िया संगति कोई दूसरी नहीं।अपने ज्ञान, ध्यान, पूजा ,जाप से उस बिंदु तक पहुंचे कि आप का समर्पण हो जाए और वह परमात्मा हर जगह महसूस हो। भगवान से जब भी प्रार्थना करें तो अपनी योग्यता और क्षमता बढाने के लिए प्रार्थना करें। दिनता, हीनता की नही।

वेदों में एक संदेश है- मनुष्यमात्र के लिए- 100 वर्षों तक हिम्मत के साथ जीवन जिए, 100 वर्षों तक उषर्बुध होकर जीवन जीए। मृत्यु जैसी कोई भी परिस्थिति जीवन में आए, या जीवन का अवसान दिखाई दे, तो पर्वत बनकर खड़े रहने की अंतर्शक्ति हो।

जिस का मनोबल ऊंचा है उसकी जीवनी शक्ति प्रबल होगी। आंतरिक रुप से कमजोर हो तो बिकट परिस्थितियों में बिखर जाओगे- टूटोगे। लेकिन यही अवसर है जब कमजोर ना बने, तो नया कीर्तिमान बनाएंगे और खुद को निखारोगे।

संसार घटनाओं का प्रवाह है

संसार घटनाओं का प्रवाह है- अच्छी- बुरी घटनाएं घटती रहेगी। लेकिन इसमें धैर्य के साथ खड़े रहकर, संतुलन बनाते हुए आगे बढ़े।घटनाओं से सीखे। सीखेंगे नहीं तो निखरेंगे नहीं। विश्लेषण करें- यह घटना क्यों आई और इसके लिए मैं कितना जिम्मेदार था? क्या करना चाहिए था? यही आत्मचिंतन है

जब आप कर्मों में परिवर्तन लाओगे तो भाग्य बदलेगा। अपने आप को बदलें।आप की मनोदशा -अंतस्थ शुद्ध है, पवित्र है ,बुद्धि प्रज्ञा है- तो कैसा भी वातावरण सामने आए- व्यक्ति उसे स्वर्ग में बदलेगा।

स्वर्ग आपके अंदर है। आपका मनोभाव, व्यवहार और जीवनशैली व्यक्ति के स्वर्ग को बनाता है।स्वर्ग और नर्क में साधन सुविधाओं में कोई भेद नहीं। अपने जीवन शैली ठीक करें तो आप जहां जाए वहां स्वर्ग होगा।

आपकी मुस्कुराहट को छीनने के लिए दुनिया हर पल तैयार है। इसके लिए आपको स्वयं ही प्रयास करना पड़ेगा। कठपुतली ना बने- अपने जीवन की डोर दूसरों के हाथ ना दे। जिन्होंने भी धरती पर बेहतर किया, वह धरती के तारे/ नक्षत्र है और उनकी चमक लोगों के दिल में है।

1 Comment

  1. R D Karothiya says:

    Bahut sundar manushya ka jiwan bina adhyatmiktaa ke adhura hai.

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