भारी पड़ रही है प्रकृति अनुकूल जीवन शैली के प्रति बेहोशी

भारी पड़ रही है प्रकृति अनुकूल जीवन शैली के प्रति बेहोशी

मौसमचक्र

भारी पड़ रही है प्रकृति अनुकूल जीवन शैली के प्रति बेहोशी

कुछ दशकों से पूरे देश में गर्मी, ठंडी, बरसात तीनों मौसमों का ताण्डव देखने को मिल रहा है। मौसम के मिजाज में तेजी से आ रहे अस्वाभाविक बदलाव के चलते आम जनमानस को बरसात के मौसम में बाढ़, गर्मी में तपन, सर्द में भारी शीत झेलना पड़ता है। इन दिनों बरसात हाहाकार मचा ही रखी है। पहाड़ी राज्यों में बादल फटना, पहाड़ों की टूट व पत्थरों की वर्षा जैसा भयावह संकट है। तो कई प्रांतों के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रें में बाढ़ कहर बनकर टूटी है।

असंख्य शहरों में वर्षा जलभराव से आम जनजीवन जटिल हो गया है। दूसरी ओर देश में लगातार भूमिगत जल के नीचे जाने से शुद्ध पेय जल संकट देशवासियों के सामने मुंह बाये खड़ा है। भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व भर में भूमिगत जल में हो रही घटोत्तरी और बढ़ते समुद्र चिंता के विषय हैं। इनसे लगता है बीसवीं सदी में पेट्रोलियम पर अधिकार के लिए युद्ध का सामना करने वाला विश्व इक्कीसवीं सदी पेय जल संकट को लेकर आमने-सामने न खड़ा हो जाये।

परम्परागत व्यवस्था का खत्म होना

प्रकृति-पर्यावरण से जुड़ी इन समस्यों पर गौर करने पर स्पष्ट होता है कि यह संकट हम मनुष्यों ने ही पैदा किया है। केवल अपने देश भारत पर ही दृष्टि डालें, लगभग चार-पांच दशक पीछे देखें, तो भारत के गांवों में रहने के लिए मिट्टी व पुआल के मकान थे, कई-कई तालाब थे। शहरों की बसावट में आकार की दृष्टि से जन संतुलन था, जल निकास एवं जलसंग्रह के पर्याप्त साधन थे, तब हमारी भूमि को बरसात का पानी सहजता से सोखने का अवसर मिलता था। गांव-शहर सभी वृक्ष-वनस्पतियों से भरे थे, जिससे बरसात का पानी इन्हीं वृक्षों, पौध-वनस्पतियों एवं तालाबों, खेतों द्वारा अवशोषित होते हुए धरती की गहराईयों में स्वतः उतर जाता था।

देशवासियों के पास कच्चे मकानों की छतें थीं, जो बरसात का बहुत सारा पानी अपने में सोख लेती थीं, अधिक तेज बरसात होने पर ही कच्ची छतों का पानी नीचे जमीन तक पहुंचता। कच्चे मकान के आसपास कच्ची भूमि होती थी, जिसपर उतरने वाले छत के पानी का अधिकांश भाग भी सोख कर भूमि में समा जाता था। अर्थात परम्परागत कच्चे मकानों के दौर में बरसात का पानी नाली के सहारे तालाबों में तब पहुंचता था, जब बरसात बहुत तेज होती थी। चूंकि हर गांव में समुचित अनुपात में तालाब थे, तालाब का पानी भी भारी बारिश के बाद ही उमड़ता और कच्चे नालों के सहारे नदियों की ओर यात्रा करता। अन्यथा तालाब के बाहर आया पानी भी गांव में ही सोखकर समाप्त हो जाता था।

तालाबों का  गायब होना

इस प्रकार गांव का सम्पूर्ण जल लगभग पूरे वर्ष भर गांव के तालाबों में भरा रहता, जिससे भूमिगत जल स्तर बढ़ने में मदद मिलती तथा नदियों से लेकर समुद्र के उभनने का खतरा कम रहता। इसीप्रकार कृषि पर दृष्टि डालें तो सामान्यतः खेती का काम किसान बिल्कुल प्राकृतिक विधि से करता था।

इन सबके विपरीत आज गांव से तालाब लगभग गायब हैं। आधुनिकता के नाम पर अंधाधुंध शहरीकरण का दुष्परिणाम आज छोटे कस्बों, गावों, शहरों सबको भोगना पड़ रहा है। अर्थात सभी जगह अपने पानी को अपने स्थानीय भूमि पर टिकने व भूमि द्वारा सोखने की कोई व्यवस्था नहीं है। परिणामतः थोड़ी सी बरसात शहर, कस्बों और गांव सभी के लिए भयावह हो जाती है। जिससे बरसात का जल सीधे नाले, नदी से होकर बांध-पुलों, मार्गों-सड़कों को ढहाते समुद्र तक पहुंचते देखा जाना आम है। इसका दण्ड मनुष्य, वनस्पति व प्राणि जगत सभी को भुगतना पड़ रहा है।

बाढ़ भी और भूमिगत जल स्तर में गिरावट भी

मशीनों से खेती होने के कारण खेत में जल सोखने की क्षमता घटी है। प्राकृतिक खाद आदि की अपेक्षा रासायनिकी के उपयोग से खेत की भूमि में 10 फिट की गहराई तक रहने वाले केचुआ, मेढकी आदि सूक्ष्म जीवों का विनाश हुआ है। जबकि ये जीव खेत के पानी को जमीन की गहराई तक उतारने और खेती को गुणवत्तापूर्ण, उर्वर बनाने में मदद करते हैं। इनके विनाश से खेत की उर्वरता, गुणवत्ता नष्ट हुई ही, खेत भी थोडे़ से जल में तृप्त होने लगे।

आज जमीन से वृक्षों की आनुपातिक संख्या भी घटी है। लोग आम, महुआ, जामुन, बरगद आदि देशी प्रजाति के ऊंचे फलदार वृक्ष के स्थान पर व्यावसायिक पेड़ लगाने लगे, जिनकी शाखायें-तना, पत्तियां बरसात के जल को रोकने, उन्हें अवशोषित करने में बहुत कम सक्षम हैं। जबकि देशी वृक्षों के नीचे बहुत सी अन्य पौधों की प्रजातियां भी पनपती और पलती थीं, जो बरसात के जल को धरती तक पहुंचाने में भूमिका निभाती थीं। इन सबके अभाव में आसमान से गिरने वाला जल सीधे भूमि पर पड़कर तेजी से बहाव में आकर बाढ़ लाने और भूमिगत जल स्तर के गिरावट का कारण बनता है।

अतिवृष्टि-अनावृष्टि

दूसरी ओर फैक्ट्रियों, कारखानों, एयरकंडीशनर से पैदा होती गर्मी, आधुनिक कृषि यंत्रों , सड़कों पर दौडते वाहन, अंधाधुंध निर्माण, रासायनिक खादों आदि से भी धरती का तापमान बढ़ा। जिससे समुद्री जल को सूर्य द्वारा अपनी तपन से आसमान तक पहुंचाने की रफतार में बढ़ोत्तरी हुई। साथ ही सघन वृक्षारोपण, कच्ची छत वाले मकान, प्रकृति अनुकूल जीवन व रहन-सहन, जैविक रीति-नीति आदि सब जो बादलों को आकर्षित करके पृथ्वी पर संतुलित बारिश कराने तथा सूर्य की तपन को संतुलित करने में मदद करते थे, उन रास्तों को हम बहुत पीछे छोड़ आये। अतः वायुमण्डल में बढ़ते तापमान के कारण धरती के जल को सूर्यताप द्वारा शोषित कर आसमान तक पहुंचाने में आयी तीव्रता हम रोक नहीं सकते और सघन वृक्षारोपण के अभाव में बादलों को आकर्षित कर संतुलित वर्षा के लिए अनुकूल वातावरण हम देने से रहे, इसलिए देशभर में अतिवृष्टि-अनावृष्टि अर्थात कहीं सूखा, कहीं भारी बरसात व भूमिगत जल स्तर घटने जैसी भयावह स्थिति बनना स्वाभाविक है।

मौसमचक्र, फसलचक्र, जीवन चक्र विकृत होना

हमारा सूर्य समुद्र से वायुमंडल तक पानी पहुंचा देता है, लेकिन हम बरसात द्वारा वापस मिले शुद्ध जल से पृथ्वी व इस पर आश्रय पाने वाले प्राणी, फसलों, पशुओं व वृक्ष वनस्पतियों की प्यास बुझाने में असमर्थ हैं। परिणामतः बिना उपयोग किये ही यह जल नालों -नदियों के रास्ते पुनः समुद्र में समा जाता है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है और इस धरती के साथ न्याय कर पाने में असमर्थ हो रहा है। साथ ही पर्यावरण एवं मौसमचक्र, फसलचक्र, जीवन चक्र विकृत होने, मौसम के चरित्र, मिजाज, प्रकृति बादल फटने, ग्लेशियर पिघलने और बरसात के चरित्र में बदलाव के रूप में देखने को मिल रहा है।

विश्व जागृति मिशन पर्यावरण संवर्धन अभियान

हम देशवासियों ने जाने-अनजाने रहन-सहन के ढंग, जीवन शैली में अप्राकृतिक बदलाव लाकर जो यह संकट पैदा किया है। उससे मुक्ति पाने के लिए हमें पुनः पर्यावरण एवं प्रकृतिस्थ जीवन की ओर लौटना होगा। देशभर में तालाबों को पुनर्जीवित करने, नदियों को बारहमासी बनाने, वृक्षारोपण को महत्व देने, कैमिकल मुक्त एवं जैविक कृषि परम्परा सहित घर निर्माण की प्रकृति अनुकूल शैली अपनाने, रहन-सहन, जीवनशैली सुधारने, नवनिर्मित घरों में रेन-वाटर हार्वेस्टिंग व ग्राउण्ड वाटर रीचार्ज तकनीक अपनाने, प्राकृतिक जल संचयन के स्त्रोतों  को बढ़ावा देने के प्रति जन जागरूकता फैलाने तथा जीवन शैली को प्रकृति के अनुरूप मोड़ने की आवश्यकता है। विश्व जागृति मिशन पर्यावरण संवर्धन अभियान पर कार्य कर रहा है, आइये! इससे जुड़ें, राष्ट्र-समाज को पर्यावरण संकट से मुक्त करें।

2 Comments

  1. Punam rani says:

    Jai guru dev your proposal is very nice it will take good solution of heavy rain

  2. Kanhaiya Kumar says:

    Jai gurudev bilkul shi kah rhe gurudev ji Maharaj

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