चिरयुवा राष्ट्र भारत | Eternally young India | Sudhanshu Ji Maharaj

चिरयुवा राष्ट्र भारत | Eternally young India | Sudhanshu Ji Maharaj

चिरयुवा राष्ट्र भारत | Eternally young India

चिरयुवा राष्ट्र भारत | Eternally young India

मनुर्भव’

परमात्मा ने अपनी संतान मनुष्य को ‘श्रृण्वन्तु सर्वे अमृतस्य पुत्रः’ का संदेश देते हुए कहा कि मानवधर्म ही राष्ट्र धर्म है। अर्थात सभी मत, मजहब, धर्म के लोग हमारे अपने हैं, किन्हीं विशेष व्यक्ति व व्यक्ति समूह को अपनी संतान कहकर संबोधित नहीं किया, अपितु समस्त मनुष्य जाति को परमात्मा की संतान माना। यही नहीं राष्ट्र की कोई ऐतिहासिक, भौगोलिक, राजनैतिक, सांप्रदायिक सीमा भी नहीं तय की है। वास्तव में मनुष्य द्वारा बनाई गई सीमायें पार करके ही वेदों के माध्यम से परमात्मा ने मनुष्य को ‘मनुर्भव’ अर्थात् ‘‘हे मानव! तू सही अर्थों में मानव बन’’ का आदेश दिया है।

राष्ट्रधर्म व तपःधर्म

आशय यह कि मनुष्यता ही सबसे बड़ा धर्म है, मनुष्य में मनुष्यता की प्रतिष्ठा यही राष्ट्रधर्म व तपःधर्म भी है। मानवता धारण करने का संदेश हमारे आर्षग्रंथ अपनी संतानों एवं परमात्मा अपने अमृतपुत्रें को देते हैं। इसका आशय है कि सम्पूर्ण मानव जाति अमृतपुत्र है, सभी अमरता पूर्ण संतानें हैं। वेद की दृष्टि में सब खुदा के बेटे हैं, परमपिता के पुत्र हैं। अतः मनुष्य बने रहना ही बड़ा तप है। इससे स्पष्ट होता है कि ‘‘मनुष्य मनुष्य बन सका तो यह राष्ट्र ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व एक अखण्डित विराट राष्ट्र की भूमिका में खड़ा हो सकता है। तब न तो कोई जाति, धर्म, पंथ, भाषा, भेष, क्षेत्र आदि का भेद होगा, न ही इस धरा पर कोई अपने किसी भी प्राणी को अभाव-दबाव में देख पायेगा। सभी प्रसन्नता, प्रेम, करुणा, सेवा, सहकार की भाषा बोलते हुए धरा को स्वर्ग बना रहे होंगे।’’

यदि राष्ट्र को सशक्त करना है, तो….

“यदि राष्ट्र को सशक्त करना है, तो इसी मनुष्य को मानवता का संदेश सुनाने की प्रथम आवश्यकता है, मनुष्य में मनुष्यता प्रतिष्ठित करने के लिए इसको ही राष्ट्रीय तपःभूमि पर खड़ा करना होगा। तभी इस धरा पर सुख-शांति-संवेदनशीलता-करुणा-प्रेम-सेवा के फूल खिल पाएंगे। इसके लिए सबको अंदर से यह भी अनुभव करना होगा कि जब हर इंसान की रगों में बहता खून एक जैसा है, एक ही शैली में हृदय भी धड़क रहा है, तो हर किसी को समान प्रेम-सौहार्द्र और भाई-चारे की एवं हर मन को करुणा, दया, सेवा, सहयोग, संतोष और संयम की समन आवश्यकता है।”

भारतीय सतत युवा

भारत ऋषियों का देश है और ऋषि जीवन ही यहां का मूल आदर्श है। इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। इसी मानवता के कारण प्रभु ने अपनी संतानों को अमृतपुत्र कहा है। सारी मानव जाति अमृतपुत्र है, सब अमरता की संतानें हैं, भारत इस चेतना को आत्मसात करने में अग्रण्य है, इसलिए भारतीय सतत युवा कहलाते हैं। परमात्मा चाहता है मेरे सभी पुत्र, पुत्रियां कर्मभोग आदि नाना योनियों से छूटकर मेरे अमृतमयी अनुशासन में आकर सेवापरक कृपा के अधिकारी बनें। सारे मनुष्य प्रेम, सुख, शांति और आनन्दपूर्ण वातावरण में रहते हुए इस धरती को स्वर्ग बनाएं। अशांति की आंधियां, तरह-तरह की व्याधियों से संसार को मुक्त करें। देव अनुशासन के निकट होने के कारण विश्व भर में एक भारत ही है, सबको प्रेम-सौहार्द्र, करुणा, दया, सेवा, सहयोग, संतोष और संयम के सहारे मानव के भटकते कदमों को सही दिशा दे सकता है। भारत वासियों में यह चेतना अंतःकरण की गहराई तक समाई है। अतः इसके प्रयासों से हर शरीर, मन, बुद्धि में नवीन ऊर्जा शक्ति का ड्डोत फूट सकेगा, धरा पर सुख-सौभाग्य के द्वार खुल सकेंगे।

अखण्ड राष्ट्र-अखण्ड विश्व का निर्माण का संकल्प

प्राचीन काल से इसी प्रकार से विश्व व राष्ट्र रूपी बगीचे में सुगंधित पुष्प खिलाये जाते रहे हैं, युगों-युगों से हमारे तपस्वियों, ऋषि-महर्षियों ने पहाड़ों, निर्झर, नदी तट, आश्रमों में बैठकर इसी शाश्वत सत्य ही तो खोजने का प्रयास करते आ रहे हैं। आइये सभी मिलकर मनुष्य को मनुष्य बनाने के संकल्प के साथ अखण्ड राष्ट्र-अखण्ड विश्व का निर्माण करें।

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