आत्मचिंतन के सूत्र:| जीवन जीने की कला सद्गुरु से ही प्राप्त होती है! | Sudhanshu Ji Maharaj

आत्मचिंतन के सूत्र:| जीवन जीने की कला सद्गुरु से ही प्राप्त होती है! | Sudhanshu Ji Maharaj

जीवन जीने की कला सद्गुरु से ही प्राप्त होती है!

जीवन जीने की कला सद्गुरु से ही प्राप्त होती है!

जीवन जीने की कला सद्गुरु से ही प्राप्त होती है!

जीवन का पूर्ण आनंद उन्मुक्त जीवन जिसमे आप प्रकृति के सौंदर्य को निहारते हुए हर फूल में जैसे परमात्मा मूसकरा रहा है! वही मुस्कान आपके मुखमण्डल पर भी वह देखना चाहता है! यही है जीवन जीने कि कला जो सद्गुरू से प्राप्त होती है !

सदगुरु परमात्मा के प्रतिनिधि रूप में धरती धाम पर अवतरित हुए हैं! ब्रह्मा, विष्णु, महेश सभी की शक्तियां गुरु के अंदर विद्यमान होती हैं इसलिए गुरु का सानिध्य परम की अनुभूति कराता है!

सद्गुरू हमारे पथ  प्रदर्शक हैं , मार्गदर्श्क हैं  परंतु प्रयास तो हमे स्वयं ही करना होगा- तभी कल्याण होगा! सद्गुरू संदेश देते हैं कि वर्तमान में जीने की आदत बनाओ: ना भविष्य की चिंता ना बीते हुए दिन का प्रायश्चित! जिसे आज को संभालना आ गया उसे जीवन जीने  की कला आ गई !संसार का बंधन माया है और परमात्मा का बंधन भक्ति है! अपनी भक्ति को जितना सुदृढ़ करोगे ,उतना ही परमात्मा के करीब पहुंचोगे!

सद्गुरु के चरणों में समर्पित हो जाना ही सच्ची गुरुभक्ति है !

सच्चा शिष्य वही होता है जो अपने सद्गुरू के चरणों में पूर्ण समर्पण कर दे, गुरु की छाया बनकर रहे और शिष्य के अंदर उनकी ज्योति जाग्रत हो जाये !गुरु के कार्यों में सहयोग करना ,उनके निर्देशन का पालन करना और पूरी तरह सद्गुरू के चरणों में समर्पित हो जाना ही सच्ची गुरुभक्ति है!

सद्गुरु अपने शिष्य को भक्ति की गहराई में इतना डुबो देते है! की श्वांस श्वाँस में नाम जपने की आदत हो जाती है और परम कल्याण के मार्ग तक ले जाती है!

मौन में ही परमात्मा ह्रदय में उतरता है! जैसे झील की लहरे शांत हों तभी चंद्रमा का प्रतिबिंब उसमे अक्ष बनकर उभरता है! इसलिए प्रभु के दर्शन पाने के लिए चित्त की लहरों को विचारों से शांत कीजिए!

जैसे बच्चा अपने माता पिता के संग बैठकर उनके संस्कार, उनकी वाणी सीखता है! ऐसे ही सद्गुरु की शरण में बैठने वाला भक्त परमात्मा की वाणी सीखता है!

आत्मचिंतन के सूत्र:

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