प्रार्थना | प्रभु देने योग्य हम जीवन भर बने रहें! यह विनती है हमारी | Prayer | Sudhanshu Ji Maharaj

प्रार्थना | प्रभु देने योग्य हम जीवन भर बने रहें! यह विनती है हमारी | Prayer | Sudhanshu Ji Maharaj

प्रभु देने योग्य हम जीवन भर बने रहें! यह विनती है हमारी

प्रभु देने योग्य हम जीवन भर बने रहें! यह विनती है हमारी

प्रभु देने योग्य हम जीवन भर बने रहें! यह विनती है हमारी

आइये सभी शांत मन और संतुलित भाव लेकर प्रेम पूर्वक अपनी आंखें बंद कर लें! इस पवित्र वेला में भगवान से विनती कीजिए कि वह आपकी शक्ति बने, सहारा बने, सुबुद्धि दे ! कि जिससे हम अपने मूल स्रोत से जुड़े रहें। वह मूल स्रोत जिसकी किरणें सूरज में प्रकाश बनती है और फूलों में सौंदर्य बन जाती हैं। वह शक्ति बनकर, जो गति बनकर हवा में बहती है, सुगंध बनकर हमें अनुकूलता देती है। हमारे हृदय की धड़कनों में जो प्रेम बहता है वो उस मूल स्तोत्र का ही है। मूल स्तोत्र परमेश्वर है और हमें उससे जुड़े रहना है।

जीवन की जड़ें पानी से, नमी से जुड़ी हैं ! तो पौधा हरा भरा रहता है। हम भी भगवान से जुड़े रहेंगे, हरे भरे रहेंगे, प्रसन्न रहेंगे। तो विनती करते हैं भगवान से – दयालु कृपालु करुणानिधान, हे असीम, हे अनंत, हे सर्वव्यापी परम सत्ता, अनेक अनेक नाम से व्यक्ति भक्त लोग आपको पुकारते हैं। जिस भी नाम से आपको लोग पुकारें, जिस भाव से पुकारें उसी तरह से आप तरंगे उनको देते हैं और अपने भक्तों का कल्याण करते हैं।

माता पिता बंधु सखा तुम्हीं हो और माता-पिता सदैव कल्याण ही चाहते हैं अपने बच्चों का। आप ही गुरु भी हो जो मार्गनिर्देशन करे, सही दिशा दे वो सतगुरु भी आप ही हो। हमारे संरक्षक आप हैं, रक्षा तो आप ही करते हैं, रक्षा कवच भी आप ही देते हैं। भगवान हम आपसे जुड़े हैं और हमारी जिव्हा पर आपका नाम बसे, नाम जपने मे रस आए। सेवा सत्कर्म करने में हमें रूचि हो, देने योग्य हम जीवन भर बने रहें, परम दाता तो आप हैं, दाताओं के दाता आप हैं। हम आपके बच्चे हैं हम भी देने वाले बन जायें और आप सबका मंगल करते हैं, शुभ करते हैं, हित करते हैं इसलिए तो आप शिव हैं।

प्रार्थना

प्रभु हम भी प्रार्थना करते हैं कि हमारे द्वारा भी शुभ हो, हित ही हो, कण कण में रमने वाले राम भी आप ही हो। हे प्रभु हम आपको हर स्थान पर महसूस कर सकें। आकर्षण के केंद्र बिंदु कृष्ण भी आप ही हो प्रभु। हम जीवन में अपने आकर्षण को बनाए रख सकें। अंतर्यामी गोविंद भी आप ही हो। सब कुछ जानते हो अंदर और बाहर हम कैसे हैं अच्छे बुरे जो भी, हैं तो आपके ही, हमें स्वीकार कीजिए। आपकी सृष्टि को छोड़कर आप से कहीं दूर हम जा नहीं जा सकते। हम कितना भी दौड़ लें, सब सीमाओं में ही तो होगा, हर जगह आप ही तो हो।

जीवन जी सकें इसका आशीर्वाद हमें दो

हर जगह आपके नियम कानून काम करते हैं। जहां रहना है, जहां जीना है, जहां कार्य करना है, वहां के प्रति प्रेम भी रखकर हम जीवन जी सकें इसका आशीर्वाद हमें दो कि हम जहाँ है उसी स्थान को स्वर्ग बना सकें, अनुकूलता ला सकें और चारों ओर प्रेम की तरंगों को फैला सकें, शांति, प्रसन्नता की तरंगों को फैला सकें। जिस ह्रदय में आपकी भक्ति उतरती है और जिस हृदय को आप छूते हैं, वह निश्चित कमल की तरह खिल जाता है और उसकी सुहास चारों ओर फैलने लगती है।

भगवान हमें आशीष दीजिये और आपके दर से जुड़े हुए जितने भी भक्त बैठे हुए हैं, सब कोई ना कोई आस लिए हुए है, उनकी मनोकामना पूर्ण हो। प्रभु सभी का कल्याण हो। यह विनती है हमारी, इसे स्वीकार कीजिए।

 

ॐ शांति शांति शांति ॐ।

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